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टैक्नोलॉजी के इस दौर के चलते तथा आधुनिकीकरण की वजह से वायु प्रदूषण ने लोगों की जिन्दगी के साथ साथ उनके वैवाहिक जीवन को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। शोध के मुताबिक कई ऐसे परिवार हैं, जो काफी कोशिशों के बाद भी बच्चे को जन्म देने में नाकाम हो रहे हैं।

विशेषज्ञों के अनुसार खासतौर से ऐसे कपल्स की जांच के दौरान वातावरण में मौजूद प्रदूषण पुरुषों की फर्टिलिटी पर गहरा असर डाल रहा है। महिलाओं में प्रेग्नेंसी के दौरान ही गर्भपात हो जाने के पीछे भी यह एक प्रमुख कारण बनकर सामने आ रहा है।

लगातार हो रहे प्रदूषण का असर पुरुषों में शुक्राणुओं की क्वॉलिटी पर भी नकारात्मक असर डाल रहा है। माना जाता है कि बहुत से लोगों के वीर्य में शुक्राणुओं की संख्या इतनी कम पाई गई है कि गर्भधारण के लिए जरूरी न्यूनतम मात्रा जितने शुक्राणु भी उनमें नहीं पाए गए। स्पर्म काउंट में इतनी ज्यादा कमी आने की वजह से गर्भपात का खतरा बढ़ जाता है और शुक्राणुओं के एक जगह इकठ्ठा हो जाने की वजह से वे फेलोपाइन ट्यूब में भी सही तरीके से नहीं जा पाते हैं, जिसके चलते कई बार कोशिश करने के बाद भी गर्भधारण नहीं हो पाता है।

विशेषज्ञों अनुसार “पुरुषों में फर्टिलिटी कम होने की संभावना बढ़ती जा रही है। जो मुख्य रूप से संभोग की इच्छा में कमी के रूप में दिखता नज़र आ रहा है। स्पर्म सेल्स के खाली रह जाने और उनका अधोपतन होने के पीछे जो मैकेनिज्म मुख्य कारण के रूप में सामने आता है, उसे एंडोक्राइन डिसरप्टर एक्टिविटी कहा जाता है, जो एक तरह से हारमोन्स का असंतुलन है.“ पीएम 2.5 और पीएम 10 जैसे जहरीले कण, जो कि हमारे बालों से भी 30 गुना ज्यादा बारीक और पतले होते हैं, उनसे युक्त हवा जब सांस के जरिए हमारे फेफड़ों में जाती है, तो उसके साथ उसमें घुले कॉपर, जिंक, लेड जैसे घातक तत्व भी हमारे शरीर में चले जाते हैं, जो नेचर में एस्ट्रोजेनिक और एंटीएंड्रोजेनिक होते हैं।

संभोग की इच्छा पैदा करने के लिए जरूरी टेस्टोस्टेरॉन और स्पर्म सेल के प्रोडक्शन में कमी लंबी अवधि तक जब हम ऐसे जहरीले कणों से युक्त हवा में सांस लेते है वजह बन जाती है। शोध के मुताबिक स्पर्म सेल की लाइफ साइकिल 72 दिनों की होती है और स्पर्म पर प्रदूषण का घातक प्रभाव लगातार 90 दिनों तक दूषित वातावरण में रहने के बाद नजर आने लगता है। सल्फर डायऑक्साइड की मात्रा में हर बार जब भी 10 माइक्रोग्राम की बढ़ोतरी होती है, तो उससे स्पर्म कॉन्संट्रेशन में 8 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है, जबकि स्पर्म काउंट भी 12 प्रतिशत तक कम हो जाता है और उनकी गतिशीलता या मॉर्टेलिटी भी 14 प्रतिशत तक कम हो जाती है। कहा जाये तो स्पर्म के आकार और गतिशीलता पर असर पड़ने की वजह से पुरुषों में ऑक्सिडेटिव स्ट्रेस अचानक बढ़ जाता है और डीएनए भी डैमेजज होने लगता है, जिसका असर उनकी फर्टिलिटी पर पड़ता है और उनकी उर्वर क्षमता अत्यधिक प्रभावित होती है।

सेक्स विशेषज्ञों के अनुसार हवा में काफी मात्रा में भारी तत्व घुल चुके हैं, जिसका सीधा असर सीधे हार्मोंस पर भी पड़ता है। ऐसे में हवा में घुल चुके हाइड्रोकार्बंस, लेड कैडमियम, मरकरी हारमोंस का संतुलन बिगाड़ सकते हैं व स्पर्म को प्रभावित कर सकते हैं। जी हां, अगर इस प्रदूषण का यही हाल रहा तो इसका असर यौन इच्छा की कमी में देखने को मिल सकता है। जो हमारे जीवन को और हमारे वैवाहिक जीवन को नष्ट कर सकता है।

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