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एक अध्ययन के अनुसार चिंता को तनाव की एक सामान्य प्रतिक्रिया माना जाता है। यह किसी व्यक्ति कि किसी मुश्किल स्थिति में, बहुत अधिक काम का बोझ व अन्य हादसों के कारण से पनपता है। अधिक चिंता करने पर, व्यक्ति दुष्चिन्ता विकार का शिकार हो जाता है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो अपनी सेहत को लेकर बहुत फिक्रमंद रहते हैं। वे अक्सर सोचते रहते हैं कि कहीं मुझे ये बीमारी तो नहीं, अगर है तो उनसे कैसे बचाव करूं।

कई वैज्ञानिक शोधों में यह बात साफ हो चुकी है कि जो लोग अपनी सेहत के बारे में बेवजह बहुत ज्यादा चिंता करते हैं, उन्हें दिल की बीमारी होने का खतरा सबसे ज्यादा बना रहता है। अति चिंता दिल की बीमारियों को बढ़ावा देती है। विज्ञान की भाषा में इसे रोगभ्रम या हाइपोकॉन्ड्रिया कहा जाता है। कई शोधों के मुताबिक रोगभ्रम के शिकार व्यक्ति में धीरे धीरे उसी रोग के लक्षण उभरने लगते हैं जो वो सोचता है।

चिंता संज्ञानात्मक, शारीरिक, भावनात्मक और व्यवहारिक विशेषतावाले घटकों की मनोवैज्ञानिक और शारीरिक दशा है। यह घटक एक अप्रिय भाव बनाने के लिए जुड़ते हैं जो की आम तौर पर बेचैनी, आशंका, डर और क्लेश से सम्बंधित हैं। चिंता एक सामान्यकृत मनोदशा है जो कि प्रायः न पहचाने जाने योग्य किसी उपन द्वारा उत्पन्न हो सकती है। सारा दिन तनाव में रहने वाले व्यक्ति के शरीर में कैमिकल प्रतिक्रिया करता है, जिस से एडरेनालाइल और अन्य हार्मोन हृदय की और सांस लेने की गति को बढ़ा देते हैं जिस वजह से ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है और इस प्रतिक्रिया को पूरा करने के लिए दिल को ज्यादा तेजी से पंप करना पड़ता है ताकि ज्यादा मात्रा में औक्सीजन शरीर को दी जा सके। अगर यह प्रतिक्रिया रोजाना लगातार होती है तो हृदय के लिए लगातार इतनी तेजी से पंप करना कठिन हो जाता है परिणामस्वरूप औक्सीजन सही तरीके से शरीर में नहीं पहुंच पाती है।

वैसे तो तनाव के अपने कई तरह के नुकसान होते हैं लेकिन हाल ही में एक शोध में यह बात भी सामने आई है कि डिप्रेशन की वजह से दिल की बीमारी का खतरा काफी बढ़ जाता है। आज की बदलती जीवनशैली की वजह से लोगों में डिप्रेशन यानी कि अवसाद का खतरा बढ़ता जा रहा है। कम्पटीशन का माहौल व जीवन की व्यस्तता के कारण डिप्रेस होना आम बात है। ऐसे लोग अक्सर लोगों से दूर भागते हैं और एकांत में रहना पसंद करते हैं। किसी भी जगह पर उनका दिल नहीं लगता है। तनाव की वजह से अलग थलग रहने के कारण हृदयघात होने का खतरा बना रहता है।

शोध में यह भी स्पष्ट हुआ है कई लोग ऐसे होते हैं जो अपने करीबी के बिछड़ने पर आघात रहते हैं और दिन भर उनके बारे में सोचते रहते हैं और डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं। यही डिप्रेशन उन्हें धीरे-धीरे दिल से संबंधित रोगों की चपेट में लेने लगता है। कई मामलों में बहुत से व्यक्ति काम के सिलसिले में बहुत अधिक व्यस्त रहते हैं जिस कारण वह सही तरीके से खाना भी नहीं खा पाते हैं और देर रात को सोते हैं। यहां तक कि वे अपने परिवार को भी समय नहीं दे पाते हैं अगर ऐसे में उन्हें डिप्रेशन नहीं होगा तो क्या होगा। वे यह नहीं जानते हैं कि इस बदलती जीवनशैली के चलते वह तनाव की गिरफ्त में आकर हृदय से संबंधित गंभीर रोगों को न्यौता दे रहे होते हैं।

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